सुप्रीम कोर्ट का Bulldozer Justice पर कड़ा रुख: विध्वंस के लिए दिशा-निर्देश जारी
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ‘Bulldozer Jutice’ की प्रथा पर कड़ा रुख अपनाया और इस संबंध में विध्वंस से जुड़े दिशा-निर्देश जारी किए। इस फैसले के दौरान कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कार्यपालिका न्यायपालिका का स्थान नहीं ले सकती और किसी आरोपी के अपराध के बारे में पूर्वधारणा से कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया, जिनमें आरोपियों के खिलाफ Bulldozer Justice कार्रवाई को चुनौती दी गई थी।
Bulldozer Jutice: एक गंभीर मुद्दा
Bulldozer Jutice, जैसा कि कई राज्यों में देखा गया है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें राज्य के अधिकारी आरोपियों के घरों को उनके अपराधों के आधार पर गिरा देते हैं। इसे ‘Bulldozer Jutice’ के नाम से जाना जाता है। राज्य के अधिकारियों का कहना है कि केवल अवैध ढांचे ही गिराए गए हैं, लेकिन कई याचिकाओं में इस कार्रवाई को न्यायिक प्रक्रिया के बाहर और मनमानी बताया गया। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है और बताया कि अगर किसी आरोपी के घर को बिना मुकदमे या न्यायिक प्रक्रिया के गिराया जाता है, तो यह संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।
न्यायपालिका का स्थान और कार्यपालिका की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि न्यायपालिका के फैसले के बिना किसी व्यक्ति को दोषी मानना और उसे सजा देना संविधान की धारा 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका, जो प्रशासनिक कार्यों को नियंत्रित करती है, का यह अधिकार नहीं है कि वह न्यायपालिका के स्थान पर फैसला करे और किसी आरोपी को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के सजा दे। यह सिद्धांत न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित है, और इसका पालन करना हर लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए आवश्यक है।
हर नागरिक का अधिकार है एक घर
जस्टिस गवई ने कहा कि हर नागरिक का सपना होता है कि उसका अपना घर हो। यह एक व्यक्ति या परिवार की स्थिरता और सुरक्षा का प्रतीक होता है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या संवैधानिक व्यवस्था के तहत किसी अपराध में आरोपी व्यक्ति को सजा के रूप में उसके घर से वंचित किया जा सकता है? उनका मानना था कि यदि किसी आरोपी के परिवार का घर बिना किसी उचित न्यायिक प्रक्रिया के गिरा दिया जाता है, तो यह न केवल उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा, बल्कि यह लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ भी होगा।
Bulldozer Justice और जीवन के अधिकार का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ क़ानूनी प्रक्रिया और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार संविधान में प्रदान किया गया है। अगर कार्यपालिका किसी आरोपी के घर को गिराकर उसे और उसके परिवार को बेसहारा कर देती है, तो यह उसकी जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि उसके खिलाफ क़ानूनी तरीके से अदालत में प्रमाण न हो।
Demolition के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने विध्वंस की कार्रवाई के लिए कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए:
- शोकॉज नोटिस: किसी भी निर्माण को गिराने से पहले एक शोकॉज नोटिस जारी किया जाना चाहिए, जिसमें व्यक्ति को कम से कम 15 दिन का समय दिया जाए ताकि वह अपनी सफाई में जवाब दे सके।
- विध्वंस का आधार: नोटिस में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाए कि किस प्रकार की अवैध निर्माण गतिविधि की जा रही है, और उसे क्यों गिराने की आवश्यकता है।
- न्यायिक सुनवाई: संबंधित अधिकारी को व्यक्ति की बात सुनने के बाद ही विध्वंस का आदेश देना चाहिए। इसके अलावा, घर के मालिक को 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए ताकि वह अपने निर्माण को हटाने के लिए उचित कदम उठा सके।
- जवाबदेही: यदि इन निर्देशों का उल्लंघन किया जाता है, तो अधिकारी के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की जाएगी। और यदि किसी अधिकारी ने मनमानी तरीके से विध्वंस किया, तो उन्हें पूरी संपत्ति की पुनर्स्थापना के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
- डिजिटल पोर्टल: सभी स्थानीय नगरपालिका अधिकारियों को तीन महीने के भीतर एक डिजिटल पोर्टल स्थापित करना होगा, जिसमें अवैध निर्माण के शोकॉज नोटिस और विध्वंस आदेशों का विवरण उपलब्ध होगा।
Illegal Structure को विधिपूर्वक गिराने की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अवैध संरचनाओं को विधिपूर्वक हटाना सरकार का अधिकार है, लेकिन इसे उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए करना होगा। इसका मतलब यह है कि यदि किसी संरचना का निर्माण कानून के उल्लंघन में हुआ है, तो उसे विधिवत तरीके से नष्ट किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए एक उचित नोटिस और सुनवाई की प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह माना कि अगर किसी घर को अवैध माना जाता है, तो पहले संबंधित व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस देना होगा और उस पर विचार करने के बाद ही विध्वंस की प्रक्रिया की जा सकती है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उन अधिकारियों के लिए एक कड़ा संदेश है जो कार्यपालिका के अधिकार का दुरुपयोग करके लोगों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के सजा देने की कोशिश करते हैं। न्यायिक प्रक्रिया और विधिवत सुनवाई के बिना किसी नागरिक के घर को गिराना न केवल उसके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह भारतीय संविधान और लोकतंत्र की मूल अवधारणा के खिलाफ भी है।
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