विधेयक के निर्माण के बारे में विशेष जानकारी 1991 के Places of Worship Act को राजनीतिक लाभ के लिए एक अल्पसंख्यक समुदाय को संरक्षण देने और वोटबैंक राजनीति को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था। उस समय की केंद्र सरकार ने कांग्रेस के नेतृत्व में यह कानून पारित किया, जिसने बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध कार्य करते हुए अल्पसंख्यक समुदायों की स्थिति को बनाए रखने का प्रयास किया। इसका उद्देश्य राजनीतिक स्वार्थों के तहत अल्पसंख्यकों का समर्थन प्राप्त करना था, जिससे विवादास्पद धार्मिक स्थलों को बचाया जा सके और भविष्य में उनके समायोजन के अधिकार को रोका जा सके। यह दृष्टिकोण बहुसंख्यक समुदाय के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के हनन का आरोप बन गया, जिससे यह विवादास्पद हो गया।
सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को Places of Worship Act की संवैधानिकता पर सुनवाई करेगा
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Places of Worship Act विधेयक से पहले की स्थिति इस कानून से पहले, धार्मिक संरचनाओं की स्थिति 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता संग्राम की समाप्ति के समय की स्थिति के आधार पर निर्धारित की जाती थी। इससे पहले, धार्मिक स्थल और उनके पुनर्गठन के अधिकार विवादों और न्यायालय में मुकदमों के विषय थे। लेकिन 1991 में Places of Worship Act के कानून ने इन मुद्दों को कानूनी रूप से बंद कर दिया और किसी भी कानूनी प्रक्रिया या दावा को रोक दिया जिससे धार्मिक स्थलों के परिवर्तनों की मांग की जा सके। इससे पहले, विभिन्न धार्मिक समुदाय अपने धार्मिक स्थलों की स्थिति को बदलने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते थे, लेकिन इस कानून ने ऐसी प्रक्रिया को अवरुद्ध कर दिया, जिससे धार्मिक स्थलों के संरक्षण की दिशा में विवादित तरीके अपनाए गए और राजनीतिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया गया।CIBIL में पारदर्शिता और सुधार की आवश्यकता: कार्ति चिदंबरम की चिंताओं पर चर्चा
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