भारत का Electronics क्षेत्र: प्रतिभा के अंतर को पाटने की दिशा में
भारत का electronics क्षेत्र 2027-28 तक 1.2 करोड़ नौकरियां सृजित करने की राह पर है, जिसमें 30 लाख प्रत्यक्ष और 90 लाख अप्रत्यक्ष नौकरियों के अवसर शामिल हैं। हालांकि, TeamLease Degree Apprenticeship की रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की भारी कमी देखने को मिल रही है।
प्रतिभा की कमी और कौशल अंतर
रिपोर्ट के अनुसार, इस उद्योग को 80 लाख श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ सकता है, साथ ही 1 करोड़ श्रमिकों को पुनः कौशल विकास की आवश्यकता होगी। यह अंतर सरकार की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना और इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निधि (EDF) जैसी पहलों के बावजूद बना हुआ है।
कुशल पेशेवरों की कमी खासतौर पर मुख्य तकनीकी क्षेत्रों जैसे electronics निर्माण, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, और उन्नत तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) में देखी जा रही है। जैसे-जैसे भारत उच्च-तकनीकी क्षेत्रों जैसे AI, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और इंडस्ट्री 4.0 में प्रवेश कर रहा है, निर्माण, डिज़ाइन और तकनीकी समाधान में कुशल पेशेवरों की मांग तेजी से बढ़ रही है।
शिक्षा और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच असंगति
अनेक शैक्षणिक कार्यक्रम इलेक्ट्रॉनिक्स प्रौद्योगिकी में हो रहे तेजी से बदलावों के साथ तालमेल बिठाने में असफल रहे हैं। इस कारण स्नातकों के पास व्यावहारिक कौशल की कमी है, जो उद्योग में सफल होने के लिए आवश्यक हैं।
2027 तक, इस क्षेत्र को निम्नलिखित क्षेत्रों में विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी:
- संचार और प्रसारण इलेक्ट्रॉनिक्स
- उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स
- औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स
- ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स
इसके अलावा, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रोमैकेनिकल घटकों और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए ऊर्जा प्रणालियों में कौशल वाले पेशेवरों की आवश्यकता बढ़ रही है, लेकिन प्रशिक्षित प्रतिभा की आपूर्ति इस मांग को पूरा नहीं कर पा रही है।
रोज़गार की चुनौतियां500 रुपये से कम कीमत के गैजेट
वर्तमान रोज़गार दर यह दर्शाती है कि उद्योग की आवश्यकताओं और श्रमिकों के कौशल के बीच बड़ा अंतर है:
- Electronics और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग: 60%
- आईटीआई योग्य उम्मीदवार: 40%
- सामान्य शिक्षा धाराएं: 38-55%
कौशल अंतर को पाटने के प्रयास
भारत के electronics क्षेत्र को उन्नयन, पुनः कौशल विकास और अप्रेंटिसशिप के माध्यम से एक कुशल और अनुकूल workforce तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
अप्रेंटिसशिप का विस्तार
रिपोर्ट में भारत के अप्रेंटिसशिप पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, जो 55% CAGR की दर से बढ़ रहा है। 2027 तक, अप्रेंटिस की संख्या 10 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसे 2030 तक 20 लाख तक बढ़ाया जा सकता है। ये कार्यक्रम उद्योग की जटिल मांगों को पूरा करने के लिए आवश्यक व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
नीतिगत सिफारिशें
TeamLease Degree Apprenticeship के सीईओ एआर रमेश ने कहा:
“भारत electronics निर्माण का एक वैश्विक केंद्र बनने की कगार पर है, जिसका उत्पादन मूल्य पहले ही FY23 में 101 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। हालांकि, इस क्षमता को साकार करने के लिए एक कुशल कार्यबल का होना आवश्यक है। अप्रेंटिसशिप का विस्तार और उद्योग-शिक्षा सहयोग को मजबूत करके, हम AI, IoT और इंडस्ट्री 4.0 जैसे क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर सकते हैं।”
प्रतिभा अंतर को पाटने की प्रमुख रणनीतियां
रिपोर्ट में कौशल की कमी को दूर करने के लिए कई रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया है:
1. अप्रेंटिसशिप और व्यावहारिक प्रशिक्षण का विस्तार
शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में व्यावहारिक प्रशिक्षण को शामिल करके और अप्रेंटिसशिप कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर उद्योग के लिए कुशल पेशेवरों की सतत आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
2. उद्योग-शिक्षा सहयोग को मजबूत करना
शैक्षणिक संस्थानों और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के बीच साझेदारी को मजबूत करके पाठ्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जा सकता है।
3. सरकारी पहलों का लाभ उठाना
PLI योजना और सेमीकंडक्टर मिशन जैसे कार्यक्रमों का उपयोग करके नौकरियां सृजित करना, कौशल विकास को बढ़ावा देना और अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
4. आईटीआई नामांकन और प्रशिक्षण गुणवत्ता बढ़ाना
आईटीआई कार्यक्रमों तक पहुंच बढ़ाने और प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार करके निर्माण भूमिकाओं में रोजगार दर को बढ़ाया जा सकता है, जो वर्तमान में केवल 40% है।
निष्कर्ष
भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र एक वैश्विक नेता बनने की अपार क्षमता रखता है। हालांकि, इस दृष्टि को साकार करने के लिए, कौशल अंतर को पाटने और शैक्षणिक परिणामों को उद्योग की जरूरतों के अनुरूप लाने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। अप्रेंटिसशिप का विस्तार और सहयोग को बढ़ावा देकर, भारत अपने कार्यबल को मजबूत कर सकता है और उच्च-तकनीकी वैश्विक अर्थव्यवस्था में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
यह लेख ‘बिज़नेस स्टैंडर्ड’ से प्रेरित है।