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हमारी लाड़ली Geeta Phogat

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हमारी लाड़ली Geeta Phogat

Geeta Phogat: भारतीय कुश्ती की अग्रणी

Geeta Phogat, भारतीय कुश्ती का एक ऐसा नाम है जो न केवल एक एथलीट के रूप में बल्कि सशक्तिकरण और दृढ़ संकल्प के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। 15 दिसंबर 1988 को हरियाणा के एक छोटे से गांव बलाली में जन्मी गीता ने 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। उनका सफर लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गया है कि सपने देखने और उन्हें पूरा करने की कोई सीमा नहीं होती।

प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा

Geeta Phogat का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जहां कुश्ती जीवन का एक हिस्सा थी। उनके पिता महावीर सिंह फोगाट, जो खुद एक पहलवान थे, ने गीता की प्रतिभा को बचपन में ही पहचान लिया और अपनी बेटियों, गीता और बबीता, को कुश्ती का प्रशिक्षण देने का फैसला किया।

प्रशिक्षण सख्त था, और चुनौतियां भी कम नहीं थीं। गीता और उनकी बहनों को केवल अखाड़े में ही नहीं बल्कि समाज की पुरानी सोच और लैंगिक भेदभाव से भी लड़ना पड़ा। महावीर फोगाट के अनूठे प्रशिक्षण तरीके, जो फिल्म दंगल में भी दिखाए गए हैं, परिवार के त्याग और दृढ़ निश्चय की झलक पेश करते हैं।

प्रसिद्धि का सफर

Geeta Phogat का जीवन बदलने वाला क्षण 2010 में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में आया। 55 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में प्रतिस्पर्धा करते हुए उन्होंने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। यह उपलब्धि न केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता थी, बल्कि महिलाओं की कुश्ती को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में भी मददगार साबित हुई।

हमारी-लाड़ली-geeta-phogatगीता की सफलता यहीं तक सीमित नहीं रही। उन्होंने 2012 के लंदन ओलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया और ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बनीं। हालांकि वे पदक नहीं जीत पाईं, लेकिन उनका वहां पहुंचना ही एक बड़ी उपलब्धि थी जिसने कई युवा महिला एथलीट्स को प्रेरित किया।

चुनौतियां और संघर्ष

Geeta Phogat का सफर कठिनाइयों से भरा रहा। चोटों और कड़ी प्रतिस्पर्धा ने कई बार उनकी हिम्मत को परखा, लेकिन उनका अडिग हौसला उन्हें हमेशा आगे बढ़ाता रहा। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में हिस्सा लिया और अपनी पहचान बनाई। गीता की उपलब्धियों ने नई पीढ़ी की महिला पहलवानों, जिनमें उनकी बहनें बबीता और विनेश फोगाट भी शामिल हैं, के लिए रास्ता बनाया।

विरासत और प्रभाव

Geeta Phogat का योगदान केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। वे उन युवाओं के लिए एक आदर्श हैं जो यह मानते हैं कि कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय के बल पर किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।

उनकी यात्रा का प्रभाव यह है कि अब कुश्ती और अन्य खेलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। उनकी कहानी, जिसे फिल्म दंगल ने जीवंत कर दिया, लाखों लोगों तक पहुंची और लैंगिक समानता, पारिवारिक समर्थन और उत्कृष्टता की खोज के संदेश को फैलाया।

हमारी-लाड़ली-geeta-phogatव्यक्तिगत जीवन

2016 में, गीता ने पहलवान पवन कुमार से शादी की और अपने जीवन को कुश्ती के साथ और गहराई से जोड़ दिया। 2021 में, उनके घर एक बेटे का जन्म हुआ। गीता अब अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के बीच संतुलन बनाए रखते हुए कुश्ती के प्रति अपनी लगन को जीवित रखे हुए हैं।

निष्कर्ष

Geeta Phogat सिर्फ एक एथलीट नहीं हैं, वे एक ऐसी पथप्रदर्शक हैं जिन्होंने भारतीय खेलों में महिलाओं के लिए एक नई दिशा तय की। हरियाणा के एक छोटे से गांव से लेकर अंतरराष्ट्रीय कुश्ती के मंच तक का उनका सफर यह साबित करता है कि मजबूत इरादों और कड़ी मेहनत से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। गीता की विरासत आने वाली पीढ़ियों को बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित करती रहेगी। हमारे लाड़ले Jaideep Ahlawatहमारी लाड़ली-Saina Nehwalहमारे लाडले – Baba Ramdev

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