बिना टैलेंट के वायरल होने का दौर: Khushi और डिजिटल युग

बिना टैलेंट के वायरल होने का दौर

बिना टैलेंट के वायरल होने का दौर: खुशी और डिजिटल युग

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विरलता बनाम टैलेंट

khushi
बिना टैलेंट के वायरल होने का दौर

डिजिटल युग में, टैलेंट से ज्यादा viral content मायने रखता है। इसका ताजा उदाहरण Khushi हैं। उनकी आवाज इतनी तेज और असंगत है कि सुनने वाले हैरान रह जाते हैं। फिर भी, यह “सिंगिंग सेंसेशन Khushi” इंटरनेट पर छाई हुई हैं।

Khushi का वायरल होना

खुशी कक्कड़ की गायकी न तो बीट्स के साथ मेल खाती है और न ही सुर के करीब है। फिर भी, सोशल मीडिया पर वह Chahat Fateh Ali Khan जैसे उदाहरणों की याद दिलाती हैं, जिनकी बेसुरी गायकी ने ग्लोबल “पॉपुलैरिटी” पाई थी।

टैलेंट का दबना

असली टैलेंट को लोग नोटिस ही नहीं करते। सालों की मेहनत करने वाले आर्टिस्ट्स को तवज्जो नहीं मिलती। वायरल content का मतलब यह हो गया है कि “गुणवत्ता” से ज्यादा quirkiness जरूरी है।

समाज पर नकारात्मक प्रभाव

  • मध्यम स्तर की स्वीकार्यता: कमजोर performances को ट्रेंड करना टैलेंट का महत्व घटा देता है।
  • सांस्कृतिक पतन: कला की गुणवत्ता कम होती है।
  • ट्रोल कल्चर: वायरल होने के पीछे अक्सर उपहास होता है, जो नकारात्मक माहौल को बढ़ावा देता है।

क्यों वायरल होता है “खराब कंटेंट”?

लोगों को ironic humor पसंद है। बेसुरा गायन देखकर लोग उसे शेयर करते हैं। Shock value और quirky पर्सनालिटी ज्यादा चर्चा में आती है।

समाधान की दिशा

गुणवत्ता को बढ़ावा दें: अपने लाइक और व्यूज़ उन लोगों को दें जो genuine talent दिखाते हैं।

जागरूकता बढ़ाएं: समाज को यह समझने की जरूरत है कि मस्ती के लिए खराब कंटेंट को बढ़ावा देना वास्तविक टैलेंट को पीछे कर देता है।

निष्कर्ष

Khushi जैसी हस्तियां समस्या नहीं हैं; असली चुनौती यह है कि हमारा ध्यान quality से ज्यादा quirk पर केंद्रित हो गया है। क्या हम real talent को वह पहचान देने के लिए तैयार हैं जो उसका हक है?

 

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